पश्चाताप करने के लिए उल्टी परिक्रमा
कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में प्रायश्चित (प्राश्चित) के रूप में उल्टी परिक्रमा करने की प्रथा होती है। खासकर हिंदू धर्म और कुछ अन्य आध्यात्मिक परंपराओं में, यदि कोई व्यक्ति किसी नियम या धर्मिक आचार का उल्लंघन करता है, तो उसे पश्चाताप करने के लिए उल्टी परिक्रमा (वामावर्त परिक्रमा) करनी पड़ सकती है।
उल्टी परिक्रमा का अर्थ और महत्व:
- प्रायश्चित और पश्चाताप – जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर या पवित्र स्थान पर जाने के नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे प्रायश्चित स्वरूप उल्टी परिक्रमा करनी होती है।
- विशेष अवसरों पर – कुछ धार्मिक स्थलों पर विशेष रूप से यह परंपरा देखी जाती है, जहाँ भक्त अपनी गलतियों के लिए पश्चाताप स्वरूप उल्टी दिशा में परिक्रमा करते हैं।
- श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक – यह एक प्रकार की आत्मशुद्धि मानी जाती है, जहाँ व्यक्ति अपने अहंकार और गलतियों को त्यागने का संकल्प लेता है।
उदाहरण:
- कुछ स्थानों पर तिरुपति बालाजी मंदिर या कांची कामाक्षी मंदिर जैसी जगहों पर उल्टी परिक्रमा की परंपरा देखी जाती है।
- दक्षिण भारत में कई भक्त मंदिर के चारों ओर "अंगप्रदक्षिणा" (धरती पर लेटकर घूमने) के रूप में भी प्रायश्चित करते हैं।
हालांकि, सामान्यतः हिंदू धर्म में परिक्रमा दक्षिणावर्त (दाईं ओर से, घड़ी की सुई की दिशा में) की जाती है, और वामावर्त परिक्रमा केवल विशेष परिस्थितियों में ही की जाती है।
Comments
Post a Comment